गाज़ीपुर बार्डर का एक दृश्य

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निवेदिता

गाज़ीपुर बॉडर से. बॉर्डर से करीब एक किलोमीटर पहले गाड़ी छोड़ दी. पुलिस बैरीकेट लगा है. वहां से पैदल मंच तक जाने के लिए रास्ता सीधा है. इस रास्ते पर कई बार आये हैं पर इसबार का दृश्य आंखों में बस गया है. सर्द हवा की तेज़ लहर मेरे कपड़े को भेदकर मुझ तक पहुंच रही है. मैंने कस कर गर्म शॉल अपने चारों तरफ लपेट लिया है. खुली सड़क पर लोग बैठे हैं. कई रंगकर्मियों की टोली किसान आंदोलन के समर्थन में पहुंची हुई है. खचाखच भरे चाय और रोटी की लंगर जगह जगह लगी है. मैं उनसे बात करने की कोशिश करती हूं. एक 22 साल का नौजवान है उसके साथ कई साथी हैं. वे सब लंगर की तैयारियां कर रहे हैं. रात के भोजन के लिए सब्जियां और अलॉव पर रोटियां सेकी जाएंगी. हर रोज हजारों लोग लंगर में खाते हैं. आस पास मजदूरों की बस्तियां हैं. वे सब लंगर में ही खाते हैं. तोंद वाला पुलिस भी वही खाकर गया है. कई पुलिस वाले वहां जमे हुए हैं. मैंने उस नौजवान से पूछा कब से यहां हैं आप? माफ़ कीजिएगा ,क्या पूछा आपने? मैंने सवाल दुहराया. अब तो बहुत दिन हो गए यहां. आपकी पढ़ाई को नुकसान नहीं हो रहा है? हमारे खेत ही नहीं रहेंगे तो पढूंगा कहां से? हमारे घर में सब किसान हैं. हमारी रोज़ी रोटी का वहीं जरिया है.  पिछले दो दिनों से काफी ठंड पड़ रही है. किसान यहां से शहर की तरफ ना जा सकें इसलिए पूरा इलाका पुलिस छावनी में बदल गया है. बाहरी दुनिया से इनका पूरी तरह से संपर्क काट दिया गया है. सड़कों को पार करते हुए मैं स्टेज़ के पास हूं. 1960 के दशक में कुछ गानों पर किसानों के सवाल पर गीत गाए जा रहे हैं. जोशीले गीत और नारे से सड़क गूंज रही है. एक प्यारी सी नौजवान लड़की गा रही है. उसका सुनहरा गोरा रंग उसकी चमकती हुई अपनेपन से भरी, खुली निगाह जैसे आत्मा को रंग देगी. वो गा रही है, शब्द भीग रहे हैं. फैज़ साहब की नज़्म तानाशाह को चुनौती दे रही है

बोल कि लब आज़ाद हैं तेरे

बोल ज़बाँ अब तक तेरी है

तेरा सुतवाँ जिस्म है तेरा

बोल कि जाँ अब तक् तेरी है

देख के आहंगर की दुकाँ में

तुंद हैं शोले सुर्ख़ है आहन

खुलने लगे क़ुफ़्फ़लों के दहाने

फैला हर एक ज़न्जीर का दामन

बोल ये थोड़ा वक़्त बहोत है

जिस्म-ओ-ज़बाँ की मौत से पहले

बोल कि सच ज़िंदा है अब तक

बोल जो कुछ कहने है कह ले

संस्कृतिक आयोजन खत्म हुआ. अलग अलग संगठन के लोग किसानों के साथ मिल रहे हैं. अपना समर्थन दे रहे हैं. पंजाब के बड़े गायकों की टीम पहुंची हुई है.बाबा फरीद और बुल्लेशाह के गीत गाए जा रहे हैं. धूप अब उतर रही है. हवा के साथ सूरज की किरणें हल्की आभा बिखेर रही है. एक बुजुर्ग अपने तंबू में बैठे हैं. आप कब तक रहेंगे यहां बाबा? बिटिया वाहे गुरु जबतक रखे. उन्होंने कभी इतना बड़ा इम्तहान नहीं लिया था. हम तो तब तक नहीं जाएंगे जबतक तीनों कानून रद्द नहीं होगा. अगर रद्द नहीं हुआ तो ? तो यही मर जाएंगे. वापस नहीं जाएंगे . करतार सिंह  का वादा है बिटिया. अंग्रेज़ गए तो इस सरकार को भी जाना होगा. हम दूसरी आजादी की लड़ाई लड रहे हैं..मैं 80 साल के बाबा करतार सिंह को सलाम करती हूं. उनकी उम्मीद को सलाम करती हूं.बाहर निकल कर गाड़ी में बैठ गई. खिड़की के बाहर तेज़ हवा और धुंध में उठते हुए घुएं की पतली, थरथराती लकीरों को देख रही हूं. दूर तक नारे गूंज रहे हैं और मेरी आंखे भीग रही है.

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