उनकी आंखों में देश के खेत और खलिहान हैं!

सिंघु बॉर्डर से. संघर्ष कोई शब्द है तो किसानों के आंदोलन को देखना चाहिए. किस तरह वे ठंडे आसमान के नीचे सड़कों पर बुल्लेशाह को गाते हैं. मैं उनकी आंखों में देश के खेत खलिहान देख पा रही हूं. मैं देख रही हूं मां और उस नन्हें बच्चे को जो सर्द रात में पुआल की गर्मी से खुद को ठंड से बचा पा रही हैं. 84 साल की उम्र में वे अपने वाहे गुरु को याद करते हुए कहते हैं – बिटिया हक़ ले कर जाएंगे. लोग उन्हें करतार सिंह के नाम से जानते हैं. अमृतसर से आएं हैं और 55 दिनों से सड़कों पर संघर्ष कर रहे हैं. 5 साल के बच्चे सोनू से मिलती हूं. हाथों में तख्तियां लिए नारा लगाता है. मैं पूछती हूं बच्चे तुम क्यों आएं यहां ? हक़ के लिए! मैं देखती हूं उसे. इस उम्र में वह हक़ के मायने जान गया है. मैं फिर पूछती हूं कौन सा हक़ ? बच्चा हंसता है और मेरी आंखों में आंखें डाल कहता है – रोटी का हक़. मेरी आंखें नम है. सोचती हूं आजादी के आंदोलन के बाद जो आंदोलन इतिहास में दर्ज होगा और लोग जिसे याद करेंगे वह होगा किसानों का आंदोलन. लोग जानेंगे तानाशाह के सामने वे झुके नहीं. वे जानेंगे कैसे अपनी मिट्टी से मुहब्बत करने वाली कौम जिन्दा है.

वे खेतों से मुहब्बत करते हैं, वे रोटी से मुहब्बत करते हैं और पूरे देश को रोटी खिलाते हैं. उनकी आवाज आपके दिल को छूती है और तानाशाह की नींद हराम करती है. अगर आपको देश की आजादी,स्वाधीनता और जनतंत्र के सही मायने जानने हों तो आप किसानों के आंदोलन को देखें, समझे. . मुझे उनके शक्ल में अपना खेत, फसल और अपनी मिट्टी की खुशबू मिलती है. भगत सिंह , अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ उनके बीच मौजूद हैं. गुरु नानक, गांधी, बुल्लेशाह मौजूद हैं. वे जानते हैं लड़ाई आसान नहीं है. वे जानते हैं अपनी फसलों का मोल. वे समझते हैं कैसे इस देश के किसानों को अंबानी, अडानी के हाथों बेचने की पूरी तैयारी है. मैं उनके बीच हूं और नारो की गूंज से धरती हिल रही है. . बुल्ले शाह के बोल रस घोल रहे हैं

आओ फकीरो मेले चलीए,
आरफ का सुण वाजा रे.
अनहद शब्द सुणो बहु रंगी,
तजीए भेख प्याज़ा रे.
अनहद वाजा सरब मिलापी,
नित्त वैरी सिरनाजा रे.
मेरे बाज्झों मेला औतर,
रूढ़ ग्या मूल व्याजा रे.
करन फकीरी रस्ता आशक,
कायम करो मन बाजा रे.
बन्दा रब्ब भ्यों इक्क मगर सुक्ख,

जारी…